- चैम्बर ने कराया वृक्षारोपण कार्यक्रम।
- हरिशंकरी, कदम्ब व स्नेक प्लांट सहित लगाए 70 उपयोगी पौधे।
दिनांक 08 अगस्त, 2024 को प्रातः 8 बजे चैम्बर अध्यक्ष अतुल कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में एक वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह कार्यक्रम प्रताप नगर, बी-ब्लाक के पार्क में किया गया। नेशनल चैम्बर ने हरिशंकरी, कदम्ब, हरसिंगार,गुलमोहर, कनेर, तिकोना,शीशम, बेलपत्र व स्नेक प्लांट सहित उपयोगी पौधों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से यह वृक्षारोपण कार्यक्रम किया। चैम्बर अध्यक्ष अतुल कुमार गुप्ता ने बताया कि वृक्षारोपण कार्यक्रम विभिन्न बहुमजली कॉलोनियों/सोसाइटी व पार्कों में सितम्बर माह के अंत तक किया जायेगा।
पर्यावरण संरक्षण प्रकोष्ठ के चेयरमैन गोपाल खंडेलवाल ने बताया कि वृक्षारोपण हेतु पौधे पर्यावरण मित्र के संस्थापक -अधिवक्ता अनिल गोयल द्वारा उपलब्ध कराये गये। यह वृक्षारोपण का कार्यक्रम प्रताप नगर वेलफेयर सोसायटी ने मिलकर किया। जिसमें गढ़डे प्रदीप खंडेलवाल (ईको क्लब आगरा ) द्वारा कराये गये।
हरिशंकरी वृक्ष की जानकारी देते हुए अधिवक्ता अनिल गोयल ने बताया कि हरिशंकरी का अर्थ है- भगवान विष्णु एवं शंकर की छायावली। मत्स्य पुराण में भी हरिशंकरी से जुड़ी कथा का उल्लेख है। पुराण के अनुसार देवी पार्वती जी के श्राप से भगवान विष्णु पीपल, भगवान शिव बरगद एवं भगवान ब्रह्मा पाकड़ का वृक्ष हो गए। इसलिए इन तीनों वृक्षों के संयुक्त वृक्षारोपण को हरिशंकरी कहते हैं। इन्हें एक ही थाले (गोल क्यारी) में पास पास इस तरह से लगाया जाता है कि तीनों वृक्षों का एक ही छत्र विकसित हो और तीनों का तना भी एक ही दिखाई दे।
हरिशंकरी के लाभों के बारे में बताया कि 1 – इसके तीनों वृक्ष अत्यधिक जल संरक्षित करने वाले हैं । इसलिए इनको एक साथ लगाने से उस स्थान पर प्राकृतिक जल कलश स्थापित हो जाता है और आसपास के क्षेत्र के भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाता है। 2 – यह तीनों पौधे अत्यधिक ऑक्सीजन देने वाले हैं इसलिए इनको एक ही जगह स्थापित करने से उस स्थान पर प्राकृतिक ऑक्सीजन की फैक्ट्री स्थापित हो जाती है। 3 – इसके किसी ना किसी वृक्ष पर वर्ष भर पक्षियों के भोजन के लिए फल लगते रहते हैं। इससे हर समय पक्षियों का भंडारा होता है और रहने का आश्रय मिलता है। 4 – यह कभी भी पूर्ण पत्तीरहित नहीं होती। इसलिए वर्ष भर इसके नीचे छाया बनी रहती है। इसकी छाया भी दिव्य औषधीय गुणों से भरपूर होती है, जिससे इसके नीचे बैठने वाले को पवित्रता, पुष्टता और ऊर्जा मिलती है। 5 – अनेक प्रकार के जीवों को आश्रय देने के कारण इसके कारण जैव विविधता (biodiversity) का संरक्षण होता है। पर्यावरण के चहुंमुखी संरक्षण के लिए हरिशंकरी का वृक्षारोपण सर्वोत्तम है।
पर्यावरणविद अधिवक्ता के सी जैन ने बताया कि पौधारोपण की सफलता के लिए हमें विरासत में मिले अपने क्षेत्र के वृक्षों की प्रजातियों को लगाना चाहिये। इन स्थानीय प्रजातियों के पौधों को कम पानी की आवश्यकता होती है और यहां की मई जून की गर्मियों को सह लेते हैं। यही नहीं, तितलियां भी स्थानीय वृक्षों और झाड़ियों की पत्तियों पर ही अपने अण्डे देती है। कम होतीं तितलियों का कारण भी हमारा स्थानीय प्रजातियों के वृक्षों का ना लगाना है। पाॅलीनेटर के रूप में तितलियों, मक्खियों व कीड़ों का अपना महत्व है और उन्हीं के कारण फलों में बीज बनते हैं। इन स्थानीय प्रजातियों में कृष्ण भगवान का सबसे प्रिय वृक्ष कदम्ब व राधा जी का प्रिय वृक्ष तमाल उल्लेखनीय है। कांटे वाले वृक्षों के रूप में शमी (छौंकर), बेलपत्र, हिंगोट, रेमजा, कुम्ठा, देशी बबूल आदि हैं जिन्हें बहुत कम पानी की आवश्यकता है। मालश्री, हारसिंगार, वरना आदि पुष्प वाले वृक्षों को भी लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त फायकस प्रजाति के गूलर, पाखड़, पीपल और बरगद हैं जो दीर्घायु के हैं और स्थानीय जलवायु में उपयुक्त हैं। झाड़ियों में बज्रदंती व अडूसा आदि लगाने चाहिए।
धन्यवाद ज्ञापन पूर्व अध्यक्ष मनीष अग्रवाल द्वारा दिया गया।
इस पुनीत कार्यक्रम में चैम्बर अध्यक्ष अतुल कुमार गुप्ता, उपाध्यक्ष अम्बा प्रसाद गर्ग, पूर्व अध्यक्ष मनीष अग्रवाल, पर्यावरण मित्र के संस्थापक -अधिवक्ता अनिल गोयल, पर्यावरणविद के. सी. जैन, महेश वाष्र्णेय, संदेश जैन, सुशील बंसल, जय किशन गुप्ता, अपूर्व मित्तल, अनिल सिंह सिसोदिया, अरविंद जादौन, लोकेन्द्र पाल सिंह, अभिषेक, पत्रकार प्रमिला शर्मा, अधिवक्ता रजनी अग्रवाल आदि मुख्य रूप से उपस्थित थे।