- आयकर की धारा 43 बी में सुविधाजनक संशोधन हेतु वित्त मंत्री से की गई मांग।
- यह प्रावधान है अत्यंत संवेदनशील।
- 43 बी के तहत एमएसएमई माल/सेवा विक्रेता का भुगतान खरीददार को करना होगा 15 दिन में।
- यदि लिखित में अनुबंध है तो अधिकतम 45 दिन में।
- 31 मार्च 2024 को एमएसएमई माल/सेवा विक्रेता के ऐसे सभी शेष भुगतान जुड़ जायेंगे क्रेता उद्यमी की आय में।
- ऐसे क्रेता उद्यमियों पर होगी आयकर की भरमार।
- इसमें की गयी चूक ला सकती भयंकर परिणाम।
दिनांक 17 जनवरी, 2024 को चैम्बर अध्यक्ष राजेश गोयल एवं आयकर प्रकोष्ठ चेयरमैन के अनिल वर्मा द्वारा माननीय वित्त मंत्री महोदया श्रीमती निर्मला सीतारमण जी को एक पत्र भेजकर यह निवेदन किया है कि आयकर की धारा 43 बी, जिसे गत वर्ष के बजट में पारित किया गया था और अब यह नियम बन चुका है। इसमें उद्योग के हित में उपयुक्त संशोधन की आवश्यकता है।
आयकर प्रकोष्ठ के चेयरमैन अनिल वर्मा ने बताया कि इस नियम के अनुसार एमएसएमई माल /सेवा विक्रेता से खरी और इस प्रकार इस शेष भुगतान पर आयकर अधिनियम के कर की देयता बन जाएगी।
चैम्बर अध्यक्ष राजेश गोयल ने बताया कि ऐसे सभी उद्यमियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है जिनकी माल की खरीददारी या ली गयी सेवा किसी एमएसएमई विक्रेता से संबंधित है। ऐसे सभी शेष भुगतान निर्धारित समय सीमा में ही किये जाएँ। अन्यथा ऐसी सभी शेष राशि 31 मार्च 2024 को समाप्त वर्ष की आय में जुड़ जाएगी । हालांकि इस नियम में उपयुक्त संशोधन हेतु चैम्बर द्वारा माननीय वित्त मंत्री महोदया को प्रतिवेदन भेज कर मांग की गयी है।
चैम्बर उपाध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने बताया कि इस प्रावधान में एमएसएमई के हित में किया गया था किन्तु इस प्रावधान का प्रभाव एमएसएमई सेक्टर पर विपरीत पड़ रहा है। अतः इस प्रावधान में उपयुक्त संशोधन आवश्यक है।
चैम्बर उपाध्यक्ष मनोज बंसल ने बताया कि 43 बी के प्रावधान के अनुसार 15 या अधिकतम 45 दिन में भुगतान उद्योगों में कई प्रक्रियात्मक मुद्दे जैसे मॉल या सेवा की गुणवत्ता, मात्रा, कोई विवाद या लिक्विडिटी क्रंच से प्रभावित होता है जिसके कारण भुगतान में देरी हो सकती है।
चैम्बर कोषाध्यक्ष योगेश जिंदल ने कहा कि यह प्रावधान उद्योग हित में नहीं है अतः आगामी बजट में इस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाये।
प्रतिवेदन में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं :-
– प्रावधान को सभी करदाताओं पर लागू करने के बजाय, केवल उन करदाताओं पर लागू किया जाना चाहिए जो टैक्स ऑडिट के अंतर्गत आते हैं।
– धारा 43 बी के प्रावधान का लाभ, जो विभिन्न अन्य कटौतियों के संबंध में धारा 139(1) के तहत आय की रिटर्न प्रस्तुत करने की नियत तारीख पर या उससे पहले निर्धारिती द्वारा वास्तव में भुगतान की गई राशि के संबंध में कटौती की अनुमति देता है। सूक्ष्म और लघु उद्यमों के ऐसे भुगतानों के संबंध में कर, शुल्क, उपकर, बैंकों, वित्तीय संस्थानों आदि पर ब्याज भी लागू किया जाना चाहिए। जीएसटी अधिनियम के तहत भी आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान के लिए 180 दिनों की अवधि की अनुमति है। ऐसे में विलंबित भुगतान के वास्तविक मामलों को अनपेक्षित वित्तीय कष्टों से बचाया जा सकेगा।
– क्रमशः आपूर्तिकर्ता और खरीदार दोनों “सूक्ष्म और लघु उद्यम” के बीच पारस्परिक लेनदेन को दायरे में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।