Demand to reduce the Power Tariffs – suggestions sent to Chairman – UPERC

  • विद्युत दरें बनाई जाएँ अधिक जन उपयोगी 
  • विद्युत् नियामक आयोग को भेजा प्रतिवेदन 
  • उपभोक्ता एवं यूपीपीसीएल दोनों के हित में दिए सुझाव 
  •  जितनी बिजली खर्च हो उतना लिया जाए चार्ज
  •  उपभोक्ता को आवश्यकतानुसार भार कम या ज्यादा करने का हो अधिकार 
  • लागत पर उचित मुनाफा लेकर बिजली बेची जाए शुद्ध व्यावसायिक आधार पर
  • उपकरणों – मीटर/ट्रांसफार्मर आदि पर उपभोक्ता का हो अधिकार  
  • जीएसटी के बाद इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी का कोई औचित्य नहीं – विशेष रुप से नई इकाई पर माफी और पुरानी पर ड्यूटी तर्कसंगत नहीं
  • जहां चोरी नहीं वहां चोरी की धारा लगाकर उपभोक्ता को न किया जाए न्यायिक प्रक्रिया से वंचित
  • अति भार पर जुर्माने का प्रावधान किया जाए समाप्त
  • सीधी बिजली खरीद योजना को लागू किया जाए 100 किलो वाट तक
  • 500 वर्ग मीटर के प्लॉट पर 20 किलोवाट से कम  के आवेदन पर घरेलू कनेक्शन में नहीं लिया जाये इलेक्ट्रिफिकेशन चार्ज और ट्रांसफार्मर की कीमत अलग से। 
  • कोविड महामारी के कारण बुरी तरह प्रभावित हैं उद्योग – विद्युत् दरों के आदेश में रखा जाए सकारात्मक रुख  
  • विद्युत् दरें के जाएँ  कम। 
13 जनवरी 2022 को चैम्बर भवन में विद्युत् प्रकोष्ठ की बैठक आयोजित की गयी जिसमें विद्युत् दरों में वृद्धि के प्रस्ताव पर आपत्ति की गयी और विद्युत्  दरों को अधिक जन उपयोगी बनाने के लिए विद्युत् नियामक आयोग के चेयरमैन को सुझाव भेजे गए।  चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन से मांग की कि नए विद्युत टेरिफ ऑर्डर को जन उपयोगी बनाया जाए। पूरे देश में एक ही विद्युत दर लागू होनी चाहिए इससे एक ओर लागत की असमानता दूर होगी और उद्योग सही लागत का उत्पादन दे सकेंगे। अस्वस्थ उद्योग स्वयं अपना विकल्प तलाशें गे।  जितनी बिजली खर्च हो उतना ही चार्ज लगना चाहिए।
 विद्युत प्रकोष्ठ के चेयरमैन श्री विष्णु भगवान अग्रवाल ने कहा फिक्स्ड चार्ज हटाया जाना चाहिए। उपभोक्ता को कनेक्शन कम या ज्यादा करने की छूट होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि लागत पर उचित मुनाफा लेकर बिजली शुद्ध व्यवसाय  के आधार पर बेची जानी चाहिए।  किसी को भी बिजली बगैर मीटर या मुफ्त नहीं दी जाए और इस नियम में कोई अपवाद नहीं होना चाहिए। यह समस्या वर्षों से लंबित है।  शहरी और ग्रामीण उपभोक्ता का लाइन लॉस का आकलन अलग हो न कि ग्रामीण उपभोक्ता से नुकसान की भरपाई शहरी सूक्ष्म उद्योगों से की जाए।  नया कनेक्शन देते समय उपकरणों  – मीटर/ ट्रांसफार्मर की कीमत डिस्कॉम उपभोक्ता से ले लेती हैं और कनेक्शन कटने पर बगैर किसी मुआवजा दिए ले जाते हैं, जो गलत है।  डिस्कॉम सप्लाई कोड की धारा 428 के अनुसार डिस्कॉम सिर्फ डीम्ड ओनर है न कि वास्तविक मालिक।  अतः उपकरणों पर उपभोक्ता का ही पूर्ण अधिकार है।  यह अधिकार उपभोक्ता को होना चाहिए कि वह डिस्कॉम से मुआवजा ले अथवा उन्हें सामान वापस करें।
विद्युत्  प्रकोष्ठ के जॉइंट चेयरमैन रविंद्र अग्रवाल ने व्यक्त किया कि जीएसटी लगने के बाद इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी लगने का कोई औचित्य नहीं है।  खासतौर पर नई इकाई को माफी और पुरानी इकाई पर इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी लगना उस इकाई के लिए आत्मघाती है।  गोद का बच्चा छोड़कर पेट की आस करना विवेक पूर्ण नहीं है।
अध्यक्ष मनीष अग्रवाल ने आगे कहा कि इलेक्ट्रिसिटी उपभोक्ता व्यथा निवारण फोरम को हर प्रकार के नियम उल्लंघन को सुनने का अधिकार होना चाहिए।  कई मामलों में जहां चोरी न हो वहां चोरी की धारा लगाकर उपभोक्ता को न्यायिक प्रक्रिया से वंचित कर दिया जाता है यह गलत है।   अति भार पर जुर्माना बहुत अधिक और कष्टदायक है।  चैम्बर मांग करता है कि यदि  उपभोक्ता अधिक भार प्रयोग करता है तो 1 महीने का नोटिस देकर भार बढ़ा दिया जाए।  जुर्माना लगाने का प्रावधान समाप्त होना चाहिए।
चैम्बर के विद्युत प्रकोष्ठ के चेयरमैन विष्णु भगवान अग्रवाल ने कहा कि सरकारी पावर प्लांट उत्पादन में कितनी बिजली की लागत प्राइवेट प्लांट के मुकाबले मेंटेन की जाती है और उसका घटना आवश्यक है।  सीधी बिजली खरीद योजना जो वर्तमान में 1000 किलो वाट पर लागू है, को 100 किलोवाट पर किया जाए क्योंकि विद्युत वितरण कंपनी का घाटा उपभोक्ता से लेना तर्कसंगत नहीं है।  अधिक क्षमता का ट्रांसफार्मर लगाए जाने की सूरत में किसी भी बिल्डिंग पर इलेक्ट्रिफिकेशन चार्ज नहीं लगना चाहिए।  यह चार्ज भी इतना अधिक है। इसका कोई औचित्य नहीं है। विद्युत्  प्रकोष्ठ के सलाहकार सदस्य देवेंद्र गोयल ने  बताया कि 20 किलोवाट के आवेदन से कम पर मात्र 500 वर्ग किलोमीटर के प्लॉट पर घरेलू कनेक्शन पर इलेक्ट्रिफिकेशन और अलग से ट्रांसफार्मर की कीमत लेना अन्याय पूर्ण है।  इलेक्ट्रिफिकेशन डिस्कॉम द्वारा स्वयं करना चाहिए न कि छोटे उपभोक्ता से खर्च लेकर।
चैम्बर उपाध्यक्ष अनिल अग्रवाल, उपाध्यक्ष सुनील सिंघल एवं कोषाध्यक्ष गोपाल खंडेलवाल ने संयुक्त बयान में कहा कि गत वर्ष संपूर्णबंदी एवं इस वर्ष कोविड की द्वितीय लहर से उद्योग व व्यवसाय गंभीर स्थिति में है, साथ ही तृतीय लहर की संभावना है जिससे उद्योग और व्यापार और अधिक गंभीर स्थिति में जा सकते हैं।   अतः उद्योग व व्यवसाय को बचाने के लिए विद्युत दर बढाने के स्थान पर कम की जाये। यदि कम किया जाना संभव न हो तो प्रचलित दरों में कोई बदलाव नहीं किया जाये नहीं तो मृतप्रायः उद्योग बच नहीं सकेंगे।
अंत में चैम्बर अध्यक्ष मनीष अग्रवाल एवं विद्युत प्रकोष्ठ चेयरमैन विष्णु भगवान अग्रवाल ने अपने संयुक्त बयान में यह मांग की कि पावर कॉरपोरेशन की अनुचित मांगों और अनर्गल तथ्यों पर ध्यान न देकर देश और उपभोक्ता के हितों को देखते हुए चैम्बर की मांगों पर सकारात्मक आदेश पारित किया जाए।